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दफनाने की 300 वर्ष की प्रथा बदलकर अग्नि संस्कार किया


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चंडीगढ़/हिसार, 08 मई । जिले के उकलाना खंड के गांव बिठमड़ा में अनुसूचित जाति से संबंधित डूम बिरादरी की महिला के निधन पर उनके परिवार ने 300 साल से चली आ रही प्रथा शव दफनाने की परंपरा को तिलांजलि देकर शुक्रवार को हिंदू पद्धति से अंतिम संस्कार किया। इसके साथ ही परिवार ने इस भ्रम को तोड़ दिया कि गांव के डूम मुस्लिम समुदाय के हैं।

उधर अंतिम संस्कार की परंपरा बदलने के साथ ही सोशल मीडिया में यह अफवाह जोरों से चल पड़ी है कि गांव के 30 परिवारों ने मुस्लिम धर्म छोड़कर हिंदू धर्म अपना लिया है। इन परिवारों ने सोशल मीडिया में चल रही अफवाहों को बेवजह व फिजूल की बातें कही हैं।

बिठमड़ा गांव के 30 परिवार डूम बिरादरी के हैं। अब तक इस परिवार में मृतकों को कब्रिस्तान में दफनाया जाता था लेकिन फूली देवी के निधन के बाद परिवार के युवाओं ने वर्तमान परिस्थितियों पर गौर करते हुए शव का अंतिम संस्कार दाह-संस्कार के तरीके से करने की सहमति बनाई और मृतका का गांव की शेरावत पती के स्वर्ग आश्रम में दाह संस्कार कर दिया। गांव के लोगों ने डूम परिवार द्वारा किए गए इस अंतिम दाह-संस्कार का स्वागत किया है।

शुक्रवार की दोपहर प्रशासन व मीडिया गांव में पहुंचा तो परिजनों ने उनके सामने इस भ्रम को दूर करने की अपील की कि वह मुस्लिम हैं। मृतका की एक पुत्री मूर्ति देवी व तीन पुत्र प्रकाश सतबीर एवं धर्मवीर हैं। मृतका के पुत्र प्रकाश ने बताया कि गांव में 30 परिवार डूम बिरादरी के हैं। हमारे बुजुर्ग पुराने समय से शवों को दफनाने की प्रक्रिया अंतिम संस्कार के रूप में करते आ रहे हैं। यह सही है कि औरंगजेब काल में हमारे पूर्वजों ने हिन्दू से मुस्लिम धर्म अपना लिया था, परंतु आजादी के बाद से ही हमारा भाईचारा हिंदुओं से है। हमारे समाज में हिंदू पद्धति (गंधर्व विवाह) से बच्चों का विवाह होता है। हम निकाह नहीं करते और न ही खतना करते हैं। सिर्फ अंतिम संस्कार की पद्धति दफनाने की थी, इसलिए ग्रामीण हमें मुस्लिम समझते थे। उनकी मां को भी हमने कब्रिस्तान में दफनाने की बजाय स्वर्ग आश्रम में अग्नि प्रथा से संस्कार कर परंपरा बदलने का काम किया है।

गांव के ही इसी परिवार के सदस्य मनजीत अहलावत ने बताया कि आज हमने इस भ्रम को तोड़ दिया है कि डूम परिवार मुसलमान हैं।

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