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इन बातों से हमेशा होता है नुकसान, हमेशा रहे अलर्ट


आचार्य चाणक्य भोजन को लेकर कहते हैं कि कभी ऐसा भोजन नहीं करना चाहिए, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो. चाणक्य कहते हैं कि हेल्थ ही व्यक्ति की सबसे बड़ी कमाई है, क्योंकि अगर स्वास्थ्य खराब रहेगा तो हम हमेशा किसी ना किसी समस्या की चपेट में रहेंगे.


आचार्य चाणक्य को महान राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री माना जाता है. वहीं, उन्होंने अपने नीति ग्रंथ में इंसान के जीवन, उसकी सोच सहित कई विषयों पर बारिकी से लिखा है. आचार्य चाणक्य ने अपने ग्रंथ में व्यक्ति के जीवन में किस कारण से अमन-चैन नहीं रहता, इसे लेकर कई उपाय बताए हैं. आइए जानते हैं चाणक्य के उन्हीं नीतियों के बारे में-


कुग्रामवासः कुलहीन सेवा कुभोजन क्रोधमुखी च भार्या।


पुत्रश्च मूर्खो विधवा च कन्या विनाग्निमेते प्रदहन्ति कायम्॥


आचार्य चाणक्य अपने इस श्लोक में कहते हैं कि बुरे और बदनाम गांव में रहना अच्छे इंसान के लिए खतरनाक है, क्योंकि वो इसान कितना भी परोपकारी क्यों ना हो ऐसे गांव में रहना उसके लिए ही नहीं, बल्कि उसके परिवार के लिए भी खतरनाक है. चाणक्य कहते हैं कि ऐसे गांव में रहना पल-पल डर, कष्ट और अपमानित होते हुए बीतेगा, क्योंकि उस गांव के लोग बिना किसी वजह के उसे सताते रहेंगे.


चाणक्य कहते हैं कि नीच कर्म करने वालों की सेवा करना अधर्म माना जाता है, क्योंकि बुरा करने वाला शख्स नरक में स्थान पाता है. आचार्य चाणक्य कहते हैं कि अधर्मी व्यक्ति बहुत ज्यादा गुस्से वाले स्वभाव के होते हैं. उनकी बोली हमेशा कड़वी होती है. चाणक्य कहते हैं कि ऐसे लोगों की संगति में बुराई ही सीख सकते हैं.


चाणक्य भोजन को लेकर कहते हैं कि कभी ऐसा भोजन नहीं करना चाहिए, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो. चाणक्य कहते हैं कि हेल्थ ही व्यक्ति की सबसे बड़ी कमाई है, क्योंकि अगर स्वास्थ्य खराब रहेगा तो हम हमेशा किसी ना किसी समस्या की चपेट में रहेंगे.


चाणक्य कहते हैं कि अगर किसी पुरुष की पत्नी कड़वा बोल बोलती हो. वो दूसरों को चोट पहुंचाने वाली बात करती हो, तो ये दुर्भाग्य की बता है, क्योंकि जिस घर में हमेशा झगड़ा-फसाद होता है वहां देवी-देवता का वास नहीं होता है.


चाणक्य कहते हैं कि मुर्ख एवं विधारहित व्यक्ति जीवन भर अपने मां-बाप के लिए कष्ट और पीड़ा की वजह बनता है. चाणक्य कहते हैं कि मुर्ख इंसान को दो पैरोंवाला जानवर समझकर त्याग देना चाहिए, क्योंकि वो अपने शब्द से उसी तरह भेदता है जैसे कोई अनजाने में आकर कांटा चुभ जाता है. चाणक्य कहते हैं कि ऐसी औलाद का कोई फायदा नहीं जिसका पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगता हो और जो हमेशा इधर-उधर के गलत कामों में लगा रहता हो.


श्लोक के अंत में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दुर्भाग्य से अगर बेटी विधवा हो जाए तो समाज के ताने उसके लिए पीड़ादायक हो सकते है. चाणक्य कहते हैं कि एक व्यक्ति के लिए अपनी बेटी को विधवा देखना सबसे ज्यादा कष्टदायक होता है.

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