लॉकडाउन की कैद में 'बचपन, स्वाभाविक खेलों से टूटा नाता
- anwar hassan

- May 11, 2020
- 2 min read

जयपुर, 10 मई (हि.स.)। देशव्यापी लॉकडाउन से अब उन लोगों को परेशानी होने लगी है, जो शुरुआती दिनों में इसे एक मौका मानकर परिवार के साथ समय बिता रहे थे। खासतौर पर उन बच्चों के अभिभावकों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, जिनके बच्चे घर की चारदीवारी में लंबे समय तक कैद रहने के बाद अब ऊबने लगे हैं। मैं बाहर क्यों नहीं जा सकता जैसा सवाल 7 साल के नन्हे अनिरूद्ध का है, जो लगभग 40 दिनों से घर से बाहर नहीं निकल पाया है। अनिरूद्ध की मां कविता अपने बेटे के इस तरह के सवालों से परेशान हैं। वह कहती हैं कि-बेटा घर के भीतर रहना पसंद नहीं करता, उसे शाम को बाहर खेलने जाना पसंद है। स्कूल नहीं जाने से उसे उतनी परेशानी नहीं, लेकिन शाम होते ही खेलने के लिए बाहर जाने की जिद करता है। उसके स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ रहा है। दो छोटे बच्चों की मां कविता सिंह का कहना है कि छोटे से फ्लैट के भीतर लगातार बच्चों को रख पाना मुश्किल होता है, लेकिन टीवी पर कोरोना वायरस को लेकर इतना सब कुछ बताया जाता है इसलिए बच्चों को अधिक नहीं समझाना पड़ रहा। अभी सोसायटी में कोई बच्चे बाहर नहीं निकल रहे हैं इसलिए मेरे बच्चे जिद नहीं करते लेकिन खुली हवा में सांस ना ले पाने की परेशानी तो हो ही रही है। राजस्थान मे कोरोना संक्रमण के मामले जैसे-जैसे बढ़ते जा रहे हैं, मध्यमवर्गीय परिवारों में तनाव और घबराहट बढ़ती जा रही है। लॉकडाउन के दौरान घरों के भीतर रहने को मजबूर बच्चों के लिए मोबाइल या टीवी एक बड़ा सहारा साबित हो रहे हैं। अधिकतर अभिभावकों के पास इतना अधिक काम है कि वह बच्चों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। घर से ऑफिस के काम के अलावा नौकरानी के ना आने से घर का काम भी कामकाजी लोगों को करना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति मे अकेले पड़े बच्चे पढ़ाई और मनोरंजन के नाम पर मोबाइल, टीवी या कम्प्यूटर पर अपना अधिकतर समय बिता रहे हैं। कोरोना काल में बच्चों का दोस्त बने ये डिजिटल स्क्रीन्स बच्चों के दुश्मन साबित हो रहे हैं, पर अभिभावक क्या करें? होली के बाद से ही बच्चे घर में हैं, 10 से 12 घंटे मोबाइल, टीवी या कम्प्यूटर की स्क्रीन के सामने आंखें गड़ा कर बैठे रहते हैं। यह डेढ़ महीने से चल रहा है। डॉक्टर की सलाह और जागरूकता के चलते बहुत से अभिभावक बच्चों को घरों के भीतर रखने और किसी रचनात्मक काम मे लगाने की कोशिश भी कर रहे हैं। कुछ बच्चे पेंटिंग बना रहे हैं तो कुछ अन्य रचनात्मक गतिविधियों में व्यस्त हैं। कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन में बच्चों का समय घर में छोटे-मोटे खेल, किताबें पढऩे, चंगा-पो, पेंटिंग सहित अन्य खेलों में बीत रहा है। घर से बाहर नहीं निकलने के कारण उनमें निराशा की भावना भी है। 8 वर्षीय काव्या घर में पेटिंग कर अपना समय व्यतीत कर रही है। माहभर से स्कूल बंद है। घर के आस-पास कोई सखी नहीं है, जिसके कारण उसे खेल में अकेलापन लगता है। कोरोना महामारी पर कहती है कि-उसे बस यह पता है कि कोरोना है।























































































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