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धर्म के लिए बलिदान होना गुरु मरुधर केसरी जी महाराज ने सिखाया


धर्म और संस्कृति हमेशा से बलिदान मांगती रही है । धर्म ने जो हमें जीवित रखा है , संस्कृति जिससे हमारी पहचान बनी हुई है। अगर उसके आन का प्रश्न आजाये तो अपने आप को न्योछावर करना समर्पित कर देना असीम साहस की बात है ।


जन जन के आस्था के केंद्र भारत भूषण प्रवर्तक श्रद्धेय गुरुदेव मरुधर केसरी मिश्रीमलजी म सा ने अपने समय में जन जन में इस भावना से ओत प्रोत करवा दिया था । वो अपने युग के ऐसे महान पुरुष हुए जिनके पद चिन्हों का अनुसरण कोई आज भी करें तो उसका कल्याण निश्चित है । उस महान विभूति सतगुरु ने धर्म की रक्षा के लिए जगह जगह पर कठोर परीक्षा दी है ।


धर्म क्या है धर्म को कैसे जीये इन विषयों को उन्होंने बड़े ही बारीकी के साथ उन व्यक्तियों को समझाया जिन्हें दूर दूर तक धर्म से कोई सम्बन्ध नही था , तभी तो इतने वर्ष हो गए पर आज भी वो जयवंत है । सेठ साहूकार जो केवल धनार्जन में संलग्न थे उन्हें उन्होंने धर्म का ऐसा पाठ पढ़ाया कि अब वो न्याय नीति के मार्ग पर चलकर अपने आप को कृतकृत्य मानते है । सच ही कहा है किसी ने कि धर्म हमेशा बलिदान पर ही जीवित रहता है । उस महान विभूति गुरुदेव ने धर्म की रक्षा करने के लिए कई बार अपमान को सहा , शरीर पर लाठियों की मार भी खाई , कही कही तो तलवार की नोक पर अपनी गर्दन तक को पेश कर दी लिखते लिखते ही मेरा दिल दहल रहा है स्मृति पटल पर वो सत्य घटना चलचित्र की भांति दृष्टिगोचर हो रही है।


आज हम धर्म को अंधविश्वास या ढोंग पाखण्ड की संज्ञा देते है पर वो केवल विकृति है । उन महान गुरु ने धर्म में आई विकृति को हटाते हुए धर्म को आत्मा के अंदर बताया , अबोल पशुओं के अंदर मानव की करुणा बताई , जीवन का सार अहिंसा संयम और तप के अंदर बताया । मानव जागिये और धर्म पर बलिदान हो जाइए । हम उन महान गुरु के अनुयायी है जिन्होंने धर्म को केवल रटा नही बल्कि अंतर में बसाया था । उन्होंने जगत को स्वयं के प्रति नही बल्कि धर्म के प्रति आकर्षण करवाया । ऐसे महान गुरु के प्रपौत्र शिष्य होने के नाते मैं अपने आपको सौभाग्यशाली मानता हूं कि उनकी धर्म धुरा को खींचने का सौभाग्य पा रहा हूँ।

महान गुरु के महान जन्मोत्सव पर शत शत नमन


गुरु अमृत डॉ वरुण मुनि

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