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कोरोना:घर में ही कैद हो गईं बच्चों की दादी-नानी के वाली छुट्टियां


मई और जून में गर्मी में नानी और दादी के यहां खुले आसमान और बागीचों में बीतने वाली छुट्टियां इस बार घर में ही कैद हो गईं हैं। लॉक डाउन के चलते इस बार बच्चे घर में ही रहकर प्राकृतिक सौंदर्य को महसूस करते नजर आए हैं।


देश में अचानक कोरोना नाम की एक वैश्विक महामारी ने कदम रखा जिसने देश ही नहीं दुनिया को घरों में कैद कर दिया। इस महामारी से दुनिया भर में लाखों लोगों ने अपनी जान गवां दी। इस बीमारी से बचने का मात्र एक ही उपाय कारगर रहा और वो है सामाजिक दूरी का। माना जाता है कि यह बीमारी संक्रमित इंसान के सम्पर्क में आने से होती है। इसी के कारण देश को लॉक डाउन करने की नौबत आ गई और एक माह से ज्यादा देश मे कर्फ्यू जैसा माहौल रहा। यह वही समय था जब बच्चों की गर्मियों की छुट्टियों का समय आता है और बच्चे अपनी नानी और दादी के घर इन छुट्टियों को मनाने जाते हैं।

नानी और दादी के घर होती है मस्ती

इस वक्त बच्चों के वजन से ज्यादा उनके कॉपी किताबों का बोझ उनके कंधों पर रहता है। देश में आज इतनी प्रतियोगिता हो गई है कि बच्चों में छोटे से ही ज़िम्मेदारी का बोझ भी आ जाता है। इसी बोझ को कम करने के लिए बच्चे गर्मी की छुट्टियों का इंतजार करते हैं। यह इंतजार तब खत्म हो जाता है जब नानी के यहां के बागों में आम तोड़ने को मिलते हैं और दादी और दादा रात में खुले आसमान में राजा रानी की कहानियां सुनाते हैं। यह वह वक़्त होता है जब बच्चे पढ़ाई को भूलकर मस्ती में लग जाते हैं। इस बार हुए लॉक डाउन में न तो बच्चों में आम के बागीचे देखे और न दादा से कहानियां सुनी।

दादी नानी के यहां खेले जाते हैं यह खेल

वैसे तो आधुनिक युग की ओर बढ़ रहे भारत मे आज मोबाइल ऐसा साधन बन गया हौ जिसमे किसी तरह का खेल खेला जा सकता है। इसके बाद भी नानी के यहां के दोस्तों के साथ आम के बगीचे में पकड़म-पकड़ाई खेलना, छुपा-छुपाई खेलना और पेड़ों में चढ़कर लभा-लईया खेलना आज भी बच्चे पसंद करते हैं। इस बार कोरोना काल ने बच्चों के उन सपनों को तोड़ दिया जो वह पढ़ाई करते वक़्त गर्मियों की छुट्टियों के आने इतंजार किया करते थे। हालांकि इस बीच बच्चों ने घरों में रहकर अपने तरीके से मस्ती कर लॉक डाउन व अनलॉक का लुत्फ उठाया।


अवनीश अवस्थी


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