1967 में जहां चीन को करारी मात दी थी भारत ने
- Desh Ki Dharti

- Jun 6, 2020
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लद्दाख को लेकर चीनी मीडिया भारत को 1962 की लड़ाई की बात याद दिलाताहै लेकिन चीन के सरकारी मीडिया ने कभी भी पाँच साल बाद 1967 में नाथु ला में हुई उस घटना का ज़िक्र नहीं किया है जिसमें उसके 300 से अधिक सैनिक मारे गए थे जबकि भारत को सिर्फ़ 65 सैनिकों का नुक़सान उठाना पड़ा था.
1962 की लड़ाई के बाद भारत और चीन दोनों ने एक दूसरे के यहाँ से अपने राजदूत वापस बुला लिए थे. दोनों राजधानियों में एक छोटा मिशन ज़रूर काम कर रहा था. अचानक चीन ने आरोप लगाया कि भारतीय मिशन में काम कर रहे दो कर्मचारी भारत के लिए जासूसी कर रहे हैं. उन्होंने इन दो लोगों को तुरंत अपने यहाँ से निष्कासित कर दिया.
वो यहीं पर नहीं रुके. वहाँ की पुलिस और सुरक्षाबलों नें भारत के दूतावास को चारों तरफ़ से घेर लिया और उसके अंदर और बाहर जाने वाले लोगों पर रोक लगा दी.
भारत ने भी चीन के साथ यही सलूक किया. ये कार्रवाई तीन जुलाई, 1967 को शुरू हुई और अगस्त में जाकर दोनों देश एक दूसरे के दूतावासों की घेराबंदी तोड़ने के लिए राज़ी हुए.
उन्हीं दिनों चीन ने शिकायत की कि भारतीय सैनिक उनकी भेड़ों के झुंड को भारत में हांककर ले गए हैं. उस समय विपक्ष की एक पार्टी भारतीय जनसंघ ने इसका अजीबो-ग़रीब ढंग से विरोध करने का फ़ैसला किया.
उस समय पार्टी के सांसद अटल बिहारी वाजपेयी, जो बाद में भारत के प्रधानमंत्री बने, चीन के नई दिल्ली में शाँति पथ स्थित दूतावास में भेड़ों के एक झुंड को लेकर घुस गए.
इससे पहले 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध में जब भारत पाकिस्तान पर भारी पड़ने लगा तो पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खाँ गुप्त रूप से चीन गए और उन्होंने चीन से अनुरोध किया कि पाकिस्तान पर दबाव हटाने के लिए भारत पर सैनिक दबाव बनाए.
'लीडरशिप इन द इंडियन आर्मी' के लेखक मेजर जनरल वी. के. सिंह बताते हैं, ''इत्तेफ़ाक से मैं उन दिनों सिक्किम में ही तैनात था.' चीन ने पाकिस्तान की मदद करने के लिए भारत को एक तरह से अल्टीमेटम दिया कि वो सिक्किम की सीमा पर नाथु ला और जेलेप ला की सीमा चौकियों को खाली कर दे.''
जनरल सिंह आगे कहते हैं, ''उस समय हमारी मुख्य रक्षा लाइन छंगू पर थी. कोर मुख्यालय के प्रमुख जनरल बेवूर ने जनरल सगत सिंह का आदेश दिया कि आप इन चौकियों को खाली कर दीजिए. लेकिन जनरल सगत ने कहा कि इसे खाली करना बहुत बड़ी बेवकूफ़ी होगी. नाथू ला ऊँचाई पर है और वहाँ से चीनी क्षेत्र में जो कुछ हो रहा है, उस पर नज़र रखी जा सकती है.''
उन्होंने कहा, ''अगर हम उसे खाली कर देंगे तो चीनी आगे बढ़ आएंगे और वहाँ से सिक्किम में हो रही हर गतिविधि को साफ़-साफ़ देख पाएंगे. आप पहले ही मुझे आदेश दे चुके हैं कि नाथु ला को खाली करने के बारे में फ़ैसला लेने का अधिकार मेरा होगा. मैं ऐसा नहीं करने जा रहा.''
भारतीय और चीनी सैनिकों में धक्का-मुक्की
उस समय नाथु ला में तैनात मेजर जनरल शेरू थपलियाल 'इंडियन डिफ़ेस रिव्यू' के 22 सितंबर, 2014 के अंक में लिखते हैं, "नाथु ला में दोनों सेनाओं का दिन कथित सीमा पर गश्त के साथ शुरू होता था और इस दौरान दोनों देशों के फ़ौजियों के बीच कुछ न कुछ तू-तू मैं-मैं शुरू हो जाती थी. चीन की तरफ़ से सिर्फ़ इनका राजनीतिक कमीसार ही टूटी-फूटी अंग्रेज़ी बोल सकता था. उसकी पहचान थी कि उसकी टोपी पर एक लाल कपड़ा लगा रहता था. दोनों तरफ़ के सैनिक एक दूसरे से मात्र एक मीटर की दूरी पर खड़े रहते थे. वहाँ पर एक नेहरू स्टोन हुआ करता था. ये वही जगह थी जहाँ से होकर जवाहर लाल नेहरू 1958 में ट्रेक करते हुए भूटान में दाखिल हुए थे. थोड़े दिनों बाद भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हो रही कहासुनी धक्का-मुक्की में बदल गई और 6 सितंबर, 1967 को भारतीय सैनिकों ने चीन के राजनीतिक कमिसार को धक्का देकर गिरा दिया, जिससे उसका चश्मा टूट गया."
जैसे ही काम शुरू हुआ चीन के राजनीतिक कमिसार अपने कुछ सैनिकों के साथ उस जगह पर पहुंच गए जहाँ 2 ग्रेनेडियर्स के कमांडिंग ऑफ़िसर लेफ़्टिनेंट कर्नल राय सिंह अपनी कमांडो प्लाटून के साथ खड़े थे. कमिसार ने राय सिंह से कहा कि वो तार बिछाना बंद कर दें लेकिन उनको आदेश थे कि चीन के ऐसे किसी अनुरोध को स्वीकार न किया जाए. तभी अचानक चीनियों ने मशीन गन फ़ायरिंग शुरू कर दी.
जैसे ही काम शुरू हुआ चीन के राजनीतिक कमिसार अपने कुछ सैनिकों के साथ उस जगह पर पहुंच गए जहाँ 2 ग्रेनेडियर्स के कमांडिंग ऑफ़िसर लेफ़्टिनेंट कर्नल राय सिंह अपनी कमांडो प्लाटून के साथ खड़े थे. कमिसार ने राय सिंह से कहा कि वो तार बिछाना बंद कर दें लेकिन उनको आदेश थे कि चीन के ऐसे किसी अनुरोध को स्वीकार न किया जाए. तभी अचानक चीनियों ने मशीन गन फ़ायरिंग शुरू कर दी.
चीनियों पर तोपों से गोलाबारी
भारतीय सेना के पूर्व मेजर जनरल रंधीर सिंह जिन्होंने जनरल सगत सिंह की जीवनी लिखी है, बताते हैं, "लेफ़्टिनेट कर्नल राय सिंह को जनरल सगत सिंह ने आगाह किया था कि वो बंकर में ही रहकर तार लगवाने पर निगरानी रखें, लेकिन वो खुले में ही खड़े होकर अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ा रहे थे. 7 बजकर 45 मिनट पर अचानक एक सीटी बजी और चीनियों ने भारतीय सैनिकों पर ऑटोमेटिक फ़ायर शुरू कर दिया. राय सिंह को तीन गोलियाँ लगीं. उनके मेडिकल अफ़सर उन्हें खींचकर अपेक्षाकृत सुरक्षित जगह पर ले गए. मिनटों में ही जितने भी भारतीय सैनिक खुले में खड़े थे या काम कर रहे थे, धराशाई कर दिए गए. फ़ायरिंग इतनी ज़बरदस्त थी कि भारतीयों को अपने घायलों तक को उठाने का मौका नहीं मिला. हताहतों की संख्या इसलिए भी अधिक थी क्योंकि भारत के सभी सैनिक बाहर थे और वहाँ आड़ लेने के लिए कोई जगह नहीं थी. जब सगत सिंह ने देखा कि चीनी असरदार फ़ायरिंग कर रहे हैं तो उन्होंने तोप से फ़ायरिंग का हुकुम दे दिया. उस समय तोपख़ाने की फ़ायरिंग का हुक्म देने का अधिकार सिर्फ़ प्रधानमंत्री के पास था. यहाँ तक कि सेनाध्यक्ष को भी ये फ़ैसला लेने का अधिकार नहीं था. लेकिन जब ऊपर से कोई हुक्म नहीं आया और चीनी दबाव बढ़ने लगा तो जनरल सगत सिंह ने तोपों से फ़ायर खुलवा दिया. इससे चीन को बहुत नुक्सान हुआ और उनके 300 से अधिक सैनिक मारे गए."























































































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