top of page

कोरोना को दिल्ली-मुंबई में हराना क्यों जरूरी



आर.के. सिन्हा

कोरोना संक्रमण को मात देने के लिए चले लॉकडाउन के बाद मजबूरी में अब धीरे-धीरे बाजार-दफ्तर और अन्य कामकाज शुरू होने लगे हैं लेकिन उनकी रफ्तार अत्यंत धीमी है। यह होना ही था। वैश्विक महामारी की चपेट में आने के कारण आम-खास सबकी आय पर भारी असर पड़ा है। इसलिए धीरे-धीरे ही स्थितियां सामान्य होंगी। जो लोग अभी से दिल्ली, मुंबई, पटना, लखनऊ के बाजारों के सन्नाटे से दुखी हो रहे हैं, उन्हें थोड़ा धैर्य दिखाना होगा।अभी से यह उम्मीद करना कि लॉकडाउन के फौरन बाद बड़े बाजारों में सुबह से रात नौ-दस बजे तक रहने वाली रौनक तुरंत लौट आएगी, सही नहीं है। अभी बमुश्किल दस फीसद कस्टमर बाजारों में आ रहे हैं। यह आंकड़ा धीरे-धीरे और बढ़ेगा। जैसे-जैसे लोगों की कमाई चालू होगी वैसे-वैसे हालात सुधरते चले जाएंगे। लेकिन जो ज्ञानी बाजारों के सन्नाटे से सन्न हैं, उन्हें भी बाजारों में सौदा लेने के लिए जाने से पहले अपने आप को तैयार तो कर ही लेना होगा। मतलब उन्हें मुंह पर मास्क अवश्य ही पहनना होगा। साथ ही सोशल डिस्टेनसिंग पर भी ध्यान देना होगा। प्रधानमंत्री जी ने इसके लिये बहुत बढ़िया "दो गज की दूरी" का इस्तेमाल किया है I यानी मिलो-जुलो पर दूर से हीI अभी इस स्तर पर बहुत गड़बड़ी हो रही है। हालात यह है कि दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में पढ़े-लिखे लोग भी बहुत लापरवाही कर रहे हैं। इनमें रहने वाले पढ़े-लिखे शिक्षित लोग भी सुबह पार्कों और बाजारों में बिना मास्क पहने घूम रहे होते हैं। वे सोशल डिस्टेनसिंग या "दो गज की दूरी" पर भी आवश्यक ध्यान नहीं दे रहे हैं।महाराष्ट्र में कोरोना के रोगियों की तादाद अब तो 80 हजार से ज्यादा हो चुकी है। वहां स्थिति पर नजर रखने की जरूरत है। मुंबईकरों को अपने को कोरोना के हमले से बचाना ही होगा। पर वे तो मरीन ड्राइव पर सुबह इस तरह से निकलने लगे हैं मानो सबकुछ सामान्य हो गया हो। सैकड़ों मुंबईकर मरीन ड्राइव पर मास्क लगाकर टहलते तो दिखाए देते हैं लेकिन वहां सोशल डिस्टेनसिंग की कोई परवाह नहीं कर रहा है। महाराष्ट्र सरकार ने अब समुद्र तटों के किनारे सुबह 5 बजे से शाम 7 बजे तक के लिए घरों से बाहर निकलने की इजाजत दे दी है। यहां तक ठीक है। पर लोगों को दो गज की दूरी का भी तो सख्ती से पालन भी तो करना चाहिए। देखिए कोरोना को हराने के क्रम में हमारी लड़ाई को तब ही बड़ी सफलता मिलेगी जब हम इसे दिल्ली और मुंबई से उखड़ा कर फेक देंगे। ये दोनों महानगर देश के लिए अति महत्वपूर्ण हैं। एक तो देश की राजधानी है, तो दूसरी आर्थिक राजधानी। दिल्ली में दो सौ से अधिक देशों के दूतावास और उच्यायोग हैं। यहां हजारों राजनयिक भी रहते हैं। इसके अलावा दिल्ली से सटे गुरुग्राम में ही दस हजार से अधिक जापानी, चीनी, साउथ कोरिया वगैरह देशों के नागरिक रहते हैं। इसलिए हमें दिल्ली और इसके आसपास के शहरों में कोराना के जहर को तुरंत खत्म करना होगा। इसके लिए यह अत्यंत जरूरी है कि केन्द्र और राज्य सरकारें मिलकर काम करें। ये कमोबेश कर भी रही हैं। इस संकटकाल में हमें सिर्फ अपनी पीठ ठोंकने और दूसरों की शिकायत करने की मानसिकता छोड़नी होगी।दिल्ली में कोरोना को लेकर स्थिति बिगड़ने के लिए तब्लीगी जमात की गैर-जिम्मेदाराना करतूतों और फिर प्रवासी मजदूरों के सड़कों पर आ जाने को भी काफी हद तक जिम्मेदार माना ही जाएगा। तब्लीगी जमात के गैर-जिम्मेदार लोगों ने सच में शुरू से ही दिल्ली को संकट में डाल दिया था। उन दोषियो पर कठोर कार्रवाई होनी ही चाहिए। इस बीच, अब आगे के बारे में भी सोचना होगा। उसी हिसाब से रणनीति तय करनी होगी ताकि कोरोना वायरस को शिकस्त दी जाए।अगर बात मुंबई की करें तो भारत की आर्थिक प्रगति का रास्ता यहां से ही निकलता है। मुंबई स्टाक एक्सेंज में लिस्टेड लगभग 70 फीसद कंपनियों के मुख्य कार्यालय मुंबई में ही हैं। देश के चोटी के उद्योगपति भी मुंबई में ही रहते हैं। जब मैं मुंबई की बात करता हूं तो मेरा आशय कहीं न कहीं महाराष्ट्र से भी तो होता है। आखिर मुंबई महाराष्ट्र की राजधानी है। यह देश का सबसे प्रमुख औद्योगिक राज्य भी है। महाराष्ट्र ने नब्बे के दशक में शुरू में हुए आर्थिक उदारीकरण का लाभ उठाते हुए अपनी जीडीपी को मजबूत बनाया और वर्तमान में जीडीपी के हिसाब से महाराष्ट्र देश का सबसे अग्रणी राज्य है। क्या यह छोटी बात है कि महाराष्ट्र की जीडीपी का आकार पकिस्तान की जीडीपी से भी कहीं अधिक है?दरअसल दिल्ली-मुंबई महानगर एक तरह से अपने आप में लघु भारत भी हैं। इनमें कुल जमा पांच करोड़ के आसपास लोग रहते हैं। यह आंकड़ा थोड़ा ज्यादा-कम हो सकता है। क्योंकि बड़ी संख्या में उप-नगरों से आने-जाने वाले लोग भी तो हैंI इनमें बढ़ रहे कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या को हर हाल में घटाना ही होगा। यह संभव है अगर दिल्ली-मुंबई के लोग घरों से बाहर सिर्फ विशेष परिस्थितियों में ही निकलें, मास्क पहनना कभी न भूलें और दो गज की दूरी का ख्याल रखें। यह सब कोई बहुत कठोर शर्तें तो नहीं हैं। अगर वे इस दिशा में ईमानदारी का परिचय देंगे तो बात बन जाएगी। इन दोनों जगहों में कोरोना को हराने से देश-दुनिया में अच्छा सकारात्मक और सार्थक संदेश जाएगा।एक बात और भी महत्वपूर्ण है। कोरोना काल के बाद सोशल मीडिया पर तमाम वीडियो वायरल हो रहे हैं। इनमें दिखाया जा रहा है कि कोरोना संक्रमित रोगियों को अस्पतालों में जगह नहीं मिल रही है। वे मारे-मारे घूम रहे हैं। इनमें कितना सच है, इसकी पड़ताल करने की जरूरत है। क्योंकि सोशल मीडिया पर कोई भी कुछ भी वायरल कर सकता है। लेकिन सरकारों को उन निजी अस्पतालों पर कठोर एक्शन लेने में देरी नहीं करनी चाहिए जो रोगियों को नोच-नोचकर खा रहे हैं। निजी अस्पतालों को लेकर अखबारों में भी तमाम खबरें आ रही हैं कि वहां कोरोना संक्रमित रोगियों को भारी-भरकम बिल थमाए जा रहे हैं। यह स्थिति तुरंत ही रुकनी चाहिए। यह सच में घोर निराशाजनक स्थिति है कि पैसे कमाने की हवस के चलते कुछ अस्पताल पत्थर दिल हो गए हैं। उनके अंदर का इंसान मर गया है। आखिर सरकारें इंसानियत के इन दुश्मनों पर एक्शन लेने में देरी किस कारण से कर रही है? यह सभी सरकारों की भी अग्निपरीक्षा है। उन्हें देश के आम नागरिक को कोरोना के साथ-साथ इंसानों का खून चूसने वाले राक्षसों की भी कमर तोड़नी होगी।


(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)


Comments


  • WhatsApp-icon
  • Wix Facebook page
  • Wix Twitter page
  • Wix Google+ page
Copyright Information
© copyrights reserved to "dainik desh ki dharti"
bottom of page