कोरोना संकट से लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए मोदी सरकार के पास क्या हैं रास्ते
- Rajesh Jain
- May 19, 2020
- 4 min read

पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने रविवार को केंद्र सरकार की ओर से आए 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज़ को नाकाफ़ी बताया है.
उन्होंने कहा है कि सरकार की ओर से 10 लाख करोड़ रुपये या जीडीपी का दस फीसदी वाला पैकेज़ जारी होना चाहिए क्योंकि वर्तमान पैकेज़ ने कई क्षेत्रों जैसे ग़रीबों, प्रवासियों, किसानों, मजदूरों, कामगारों, छोटे दुकानदारों, और मध्य वर्ग की उचित मदद नहीं की है.
वहीं, बीजेपी की ओर से सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनल की बहसों में कांग्रेस की आलोचना पर पुरजोर ढंग से जवाब दिया जा रहा है.
लेकिन पी चिदंबरम ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक राय दी है कि सरकार को इस समय राजकोषीय घाटा बढ़ने की चिंता छोड़ देनी चाहिए.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकार इस स्थिति में है कि वह आने वाले दिनों में राजकोषीय घाटा बढ़ाने का जोख़िम ले सके. बीबीसी ने इस विषय पर बेहतर जानकारी जुटाने के लिए आर्थिक मामलों के जानकार आलम श्रीनिवास से बात की है. इसके साथ ही बीजेपी के रुख को समझने के लिए बीजेपी प्रवक्ता गोपाल कृष्ण से बात की है.

क्या है चिदंबरम की राय
पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के मुताबिक़, सरकार को फिलहाल फिस्कल डेफिसिट यानी राजकोषीय घाटा बढ़ने को लेकर चिंतित नहीं होना चाहिए.
उन्होंने कहा, "ये फिस्कल डेफिसिट के बारे में चिंता करने का समय नहीं है. अगर अतिरिक्त व्यय दस लाख करोड़ भी होता है और अतिरिक्त उधार भी दस लाख करोड़ होता है तो ये तय है कि इससे राजकोषीय घाटा बढ़ेगा लेकिन उसकी चिंता नहीं करनी चाहिए."
लेकिन बीजेपी प्रवक्ता गोपाल कृष्ण मानते हैं कि वह ज़्यादा पैकेज़ दिए जाने को लेकर चिदंबरम की राय से सहमत हैं लेकिन वे कांग्रेस पर इस पूरे विषय को ही स्पिन करने का आरोप लगाते हैं.
गोपाल कृष्ण कहते हैं, "चिदंबरम साहब इसे स्पिन करना चाह रहे हैं. जब वित्तमंत्री ने कल की प्रेस कॉन्फ्रेंस में सारे आंकड़े दे दिए हैं. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि आरबीआई ने पहले जो स्टिमुलस पैकेज़ जारी किया है और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना में 1,92,000 करोड़ पहले दिया है तो उसको मिलाकर ये पूरा पैकेज़ है."
"ऐसे में इस पैकेज़ के तीन अंग हैं. मॉनिटरी, फिस्कल और रिफॉर्म. वह बात कर रहे हैं फिस्कल स्टिमुलस की. लेकिन पैकेज़ में ये तीनों चीज़ें होती हैं. हम पूरे आर्थिक पैकेज़ की बात कर रहे हैं. सिर्फ मांग करने की जगह उन्हें सरकार को समाधान भी देना चाहिए. मांग तो मैं भी कर सकता हूँ, लेकिन आएगी कहाँ से इतनी बड़ी रकम?"
"अगर कांग्रेस सरकार वाले राज्यों की बात करें तो वहां उन्होंने कितना पैकेज़ दिया है. ये पूछने पर कहते हैं कि उनके पास पैसा नहीं है. तो क्या ये समस्या केंद्र सरकार के सामने नहीं है?"

सरकार क्या क्या कर सकती है?
कोरोना वायरस से पहले के दौर में जाएं तो उससे पहले भारतीय अर्थव्यवस्था काफ़ी कठिनाइयों के दौर से गुज़र रही थी. इसके बाद कोरोना वायरस ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर बुरा असर डाला है. कई विशेषज्ञ मानते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था को वर्तमान स्थिति से उबरने में काफ़ी मशक्कत करनी होगी.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पी चिदंबरम की राय मानकर भारत सरकार को राजकोषीय घाटे की चिंता किए बिना एक नया पैकेज़ जारी करना चाहिए. आलम श्रीनिवास मानते हैं कि केंद्र सरकार इस समय जो भी कुछ कर रही है वो अपनी क्षमताओं को ध्यान में रखकर कदम उठा रही है.
आलम श्रीनिवास कहते हैं, "राजकोषीय घाटे के बढ़ने को हल्के में नहीं लिया जा सकता है. जब राजकोषीय घाटा बढ़ता है तो उसका असर कई सालों तक अर्थव्यवस्था पर दिखाई पड़ता है. अगर भारत में ऐसा होता है तो इसका पहला असर ये होगा कि रेटिंग एजेंसियां भारत की क्रेडिट रेटिंग घटा सकती हैं."
अर्थव्यवस्था को ठीक करने की ज़रूरत
आलम श्रीनिवास का कहना है, "अमरीका जैसे देश के पास इतनी क्षमता है कि वह एक सीमा तक अपना राजकोषीय घाटा घटा सकता है फिर भी इसका असर क्रेडिट रेटिंग पर नहीं पड़ेगा. लेकिन भारत के मामले में ऐसा नहीं है. क्रेडिट रेटिंग कम होने का असर ये होगा कि हम विदेशों से जो कर्ज लेते हैं उसे चुकाने की ब्याज दर काफ़ी बढ़ जाएगी."
"जब साल 1998 में भारत ने परमाणु परीक्षण किया था तब हमारे ऊपर अपने आप अमरीकी प्रतिबंध लग गए थे. इसकी वजह से हमारी रेटिंग कम हो गई और हमारी ब्याज़ दर बढ़ गई. इसका असर ये हुआ कि हमारी ग्रोथ रेट कम हो गई. और आर्थिक हालातों पर बहुत बुरा असर पड़ा."
"अब ये सोचिए अगर वही या उससे भी बुरा असर वर्तमान में पड़े जब हमें अपनी अर्थव्यवस्था को ठीक करने की ज़रूरत है तब रेटिंग कम हो जाए तो क्या होगा? ऐसे में कोई भी वित्त मंत्री आज की तारीख़ में इतना बड़ा जोख़िम नहीं ले सकता. और अगर लेगा भी तो धीरे-धीरे लेगा."

आर्थिक आधार पर कैसा है ये पैकेज़?
विपक्ष के साथ साथ कुछ विशेषज्ञ भी केंद्र सरकार की ओर से आए इस आर्थिक पैकेज़ को काफ़ी नहीं मानते हैं. आलम श्रीनिवास मानते हैं कि सरकार ने जो पैकेज़ जारी किया है, वो वैसा ही है जैसा कि ऐसी परिस्थितियों में जारी किया जाता है.
वे कहते हैं, "हमें इन परिस्थितियों में एक ऐसे आर्थिक पैकेज़ की ज़रूरत थी जो कि सोच के परे हो. आउट ऑफ़ द बॉक्स थिंकिंग वाला हो. इन्नोवेटिव थिंकिंग के साथ एक अलग सोच लेकर आने वाला पैकेज़ हो. लेकिन ये पैकेज़ 'बाय द बुक' पैकेज़ ज़्यादा लगता है."
"इसका मतलब ये हुआ है कि अर्थव्यवस्था में हर चीज़ को लेकर सर्वमान्य चलन होते हैं कि किसी ख़ास परिस्थिति में क्या किया जाना चाहिए. ये वैसी स्थितियों में जारी किए जाने वाले पैकेज़ जैसा ही है."
लेकिन आलम श्रीनिवास भविष्य को लेकर आशांवित नज़र आते हैं. वे कहते हैं कि अगर दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं वी शेप यानी अंग्रेजी के अक्षर वी की तरह वापस उछाल मारती हैं तो उसका असर भारत में भी देखने को मिलेगा क्योंकि कई सुधार किए जा चुके हैं.
इसके साथ ही वे ये भी कहते हैं कि अगर वापसी की रफ़्तार धीमी यानी अंग्रेजी के अक्षर यू शेप में होता है तो शायद उतना फायदा नहीं मिलेगा.
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