आर्थिक पहलुओं को लेकर सीतारमण पर होते प्रहार
- Desh Ki Dharti
- Jun 7, 2020
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आर्थिक मोर्चे पर बहस और आरोप दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। नई केंद्रीय योजनाओं को 2021तक टाल दिया गया है ।इस बीच आर्थिक अवरोधों का रोना रो रहे बिल्डर्स यानी रियल स्टेट को केंद्र सरकार के मंत्री पीयूष गोयल ने दो टूक कह कर धमाका कर दिया है कि बिल्डर अपने फ्लैट को वास्तविक लागत में बेचने से हिचकें नहीं। इस क्षेत्र में बूम की स्थिति फिलहाल नहीं आने वाली। रिजर्व बैंक के गवर्नर शशीकांत दास ने कह दिया है कि वायरस का देश की इकोनॉमी पर असर उम्मीद से कहीं ज्यादा गंभीर है बेरोजगारी संकट के कारण यह आने वाले दिनों में और गहरा सकता है। इस तरह के हालात के बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की निर्णय क्षमता अथवा कार्यशैली को लेकर भी अफवाहों का बाजार गर्म है ।मोदी जी की छवि बचाने के लिए किसी न किसी का बलिदान तो होगा ही। राजनीतिक मजबूरी के तहत होगा या रणनीति के तहत, यह भविष्य में देखने को मिलेगा ।विपक्ष आर्थिक स्थिति को बेरोजगारी से जोड़कर हल्ला बोल कर रहा था। किंतु अब सत्ता पक्ष में भी ऐसी ही सुगबुगाहट हो रही है। हालांकि सरकारी पक्ष अपने फैसलों पर अडिग और आशावान है। विपक्ष भी अपने नए नारे गढ़ने में लगा है। जैसे कि बिहार में लालू पार्टी ने गरीब अधिकार दिवस का नारा दिया है, रेल चली ना वेल मोदी सरकार फेल आदि आदि ।लाक डाउन में नाना प्रकार की गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हुई है ।कारें और रईसी के सामान बनाने और बेचने वालों की अपनी चिंता है ,तो उधर निर्यातक भी ताक रहे हैं । इधर आम गरीब आदमी की मजदूरी छिन गई। छोटे-मोटे काम धंधों पर ब्रेक लग गया और उन्हें पेट भरने के भी लाले पड़ गए। समाज सेवा के नाम पर खूब तड़क-भड़क चली ।कोई नेता बनना चाहता है तो कोई आलाकमान की नजरों में चढना चाहता है। अपने कोटा शहर में तो उत्तर, दक्षिण नगर निगम के चुनाव होने हैं ।टिकिटाथी भी खूब सेवा करते दिखे। सरकारों के दावे हैं वह किसी को भूख से मरने नहीं देंगे ।किंतु इधर तो उपचार के लिए लोग मर गए। अस्पताल के बेड पर तड़प कर मरते मनुष्य को देखना कितना भयावह था ? उसकी जांच में भी लीपापोती हो रही। हमने यह भी सुना की मुख्यमंत्री ने सड़कों पर पैदल जाते मजदूरों को राहत प्रदान की। उन्होंने अपने अफसरों को इसकी जिम्मेदारी दी और उनकी जवाबदारी तय की। यहां दिखी सुशासन की झलक। देश में श्रमिकों के लिए रेलें चलाने की मांग पुरजोर तरीके से सबसे गहलोत ने ही उठाई थी और देशभर में यहां वहां फंसे 45 लाख से ज्यादा मजबूर परिवार अपने पैतरक ठिकानों पर लौट सके।केरोना के इस संकट काल में दलीय दीवारें ढहा देनी चाहिए थी किंतु इसके विपरीत और मजबूत की जा रही है। बीमारी भी चलेगी और राजनीति भी। देश दोनों को भुगत और देख रहा है।
गयाप्रसाद बंसल
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