गलवान को क्यों कब्जाना चाहता है चीन
- Desh Ki Dharti
- Jun 19, 2020
- 5 min read

भारत-चीन के बीच चल रही तनातनी को कम करने के लिए दोनों देशों के बीच पिछले दिनों शुरू हुई वार्ता 14-15 जून की रात धूर्त चीन की धोखेबाजी के बाद फिलहाल रुक गई है। दरअसल चीनी सैनिकों द्वारा पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों पर धोखे से अचानक हमला कर दिया गया, जिसमें सेना के एक कर्नल सहित 20 योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए। हालांकि भारतीय योद्धाओं ने भी अपनी जांबाजी का परिचय देते हुए चीन के कमांडिंग ऑफिसर सहित 43 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प क्षेत्र में यथास्थिति को एकतरफा तरीके से बदलने के चीनी प्रयास के चलते हुई। 1975 में अरुणाचल के तुलुंग ला में हुए संघर्ष के 45 वर्षों बाद भारत-चीन के बीच यह सबसे बड़ा सैन्य टकराव है, जिसके चलते दोनों देशों के बीच सीमा पर पहले से जारी गतिरोध की स्थिति गंभीर हो गई है।चीन ने पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग सो झील, गलवान घाटी, डेमचोक सहित कई इलाकों में सीमा का अतिक्रमण किया है, जिसे लेकर भारत द्वारा कड़ी आपत्ति जताने के साथ चीनी सैनिकों के पीछे हटने की मांग की जा रही थी। दोनों देशों के बीच उत्पन्न गतिरोध को दूर करने के लिए दोनों के बीच वार्ता शुरू हुई थी लेकिन चालबाजी और धूर्तता तो चीनी रक्त के कतरे-कतरे में समायी है। 1962 में ‘हिन्दी-चीनी भाई-भाई’ की आड़ में धोखे से भारत पर आक्रमण कर उसने 38000 किलोमीटर इलाके पर कब्जा कर लिया था और अब एलएसी से दोनों देशों की सेनाओं के पीछे हटने के समझौते के बावजूद इस समझौते को धता बताते हुए उसने भारतीय सैनिकों पर हमला कर धूर्तता का स्पष्ट परिचय दिया है। दुनिया में चीन ही ऐसा देश है, जिसकी सीमा सबसे ज्यादा देशों से सटी है। चीन की भूमि से सटे 14 और समुद्री सीमा के किनारे 6 पड़ोसी देश हैं और इनमें से ऐसा एक भी देश नहीं है, जिसके साथ चीन के जमीन, नदी या समुद्री सीमा को लेकर मतभेद न रहे हों। वह ऐसा देश है, जो हमेशा ‘दोे कदम आगे, एक कदम पीछे’ की नीति पर चलता आया है।1962 की जंग में गलवान नदी घाटी का क्षेत्र जंग का प्रमुख केन्द्र रहा था। चीन ने वर्ष 1958 से ही यहां सड़क बनानी शुरू कर दी थी। सड़क बनने के बाद पं. जवाहरलाल नेहरू ने उसपर आपत्ति भी जताई और तभी से भारत कहता रहा है कि अक्साई चीन को चीन ने हड़प लिया है लेकिन चीन पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ा। बीते वर्षों में इस इलाके पर भारत की रणनीति बदली है और वह मुखर होकर इसपर अपना अधिकार जताने लगा है। चीन का आरोप है कि भारत गलवान घाटी के पास रक्षा संबंधी गैरकानूनी निर्माण कर रहा है। हालांकि भारत-चीन के बीच हुए समझौतों के तहत दोनों देश वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को मानेंगे और उसमें कोई नया निर्माण नहीं करेंगे लेकिन चीन ने कभी इन समझौतों का पालन नहीं किया। वह इस क्षेत्र में पहले ही जरूरी सैन्य निर्माण कर चुका है और अब मौजूदा स्थिति बनाए रखने की बात करता है। इस क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए अब भारत भी वहां सामरिक निर्माण करना चाहता है किन्तु चीन को यह रास नहीं आ रहा। भारत लद्दाख में सड़क बना रहा है, जिसका चीन विरोध कर रहा है और इसी कारण चीनी सैनिक पिछले कुछ दिनों से भारतीय सैनिकों से भिड़ रहे थे। सिक्किम के नाकुला में भी दोनों पक्षों के बीच हाथापाई हुई थी। पैंगोंग झील के पास 5-6 मई की रात सैनिकों में टकराव के बाद 6 जून को दोनों देशों के बीच समझौता हुआ था किन्तु चीन की फितरत ही धोखेबाजी की रही है, जो किसी समझौते को नहीं मानता।चीन की बौखलाहट का सबसे बड़ा कारण यही है कि भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखण्ड, सिक्किम तथा अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरने वाली भारत-चीन की 3488 किलोमीटर लंबी सीमा पर सड़क, रेल तथा हवाई अड्डों का जाल बिछा दिया गया है। आधा दर्जन हवाई पट्टियों, करीब 125 पुलों और सड़क का 80 फीसदी काम पूरा हो चुका है, जो चीन की आंखों की किरकिरी बन रहा है। वह नहीं चाहता कि भारतीय सेना की इन इलाकों तक सुगम पहुंच बने क्योंकि वह जब-तब इन इलाकों में अतिक्रमण की कोशिश करता रहता है। गलवान घाटी में भी वह अपनी सम्प्रभुत्ता का दावा करता रहा है। पश्चिमी हिमालय की गलवान नदी घाटी विवादित क्षेत्र अक्साई चीन में आती है, जो लद्दाख और अक्साई चीन के बीच भारत-चीन सीमा के नजदीक स्थित है। एलएसी यहां अक्साई चीन को भारत से अलग करती है। गलवान घाटी में मौजूदा विवाद का मुख्य कारण भारत द्वारा किए जा रहे सड़क निर्माण को लेकर है। दरअसल भारत दौलत बेग ओल्डी स्थित अपने एक महत्वपूर्ण सैन्य हवाई अड्डे तक सड़क बना रहा है, जो एलएसी के आसपास अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर करने की सैन्य रणनीति का अहम हिस्सा है। भारत के लिए यह सड़क इसलिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके जरिये एलएसी पर तैनात भारतीय सेना को किसी आपातकालीन स्थिति में शीघ्र मदद प्रदान की जा सकती है।अगर अक्साई चीन में भारत सैन्य निर्माण करता है तो वहां से चीनी सेना की गतिविधियों पर नजर रखना आसान हो जाएगा, जो चीन को हजम नहीं हो रहा। चीन भारत के इस सड़क निर्माण को अवैध बता रहा है जबकि वह स्वयं एलएसी के आसपास के क्षेत्र में सड़कें बनाकर अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत कर चुका है लेकिन भारत द्वारा यही कार्य करने पर उसे आपत्ति है। दरअसल चीन को इस बात का भय है कि एलएसी पर भारत अपनी सड़क व्यवस्था मजबूत करने में सफल रहा तो उसे अब तक यहां की स्थिति से जो फायदा मिल रहा है, उसे वह खो देगा। हालांकि भारत ने चीन की आपत्तियों को सदैव यह कहकर पुरजोर तरीके से खारिज किया है कि वह अपने इलाके में सड़क निर्माण कर रहा है, जिसका उसे पूरा अधिकार है। भारत द्वारा किए जा रहे सड़क निर्माण को रोकने के लिए ही चीन विवादित इलाके में अपनी सैन्य गतिविधियां बढ़ाते हुए काफी आगे तक बढ़ आया था। पिछले डेढ़ महीने के दौरान यह तीसरा मौका है, जब चीन ने भारत पर दबाव बनाकर इस सड़क निर्माण को रोकने के लिए हमारे सैनिकों से झड़प की। 5 मई को चीनी सैनिकों ने पैंगोंग झील के पास भारतीय सैनिकों को गश्त करने से रोका था, उस झड़प में दोनों देशों के करीब सौ सैनिक घायल हो गए थे। उसके बाद 9 मई को उत्तर सिक्किम के नाथूला सेक्टर में हुई झड़प में भी दर्जनभर सैनिक घायल हुए थे। अब गलवान घाटी विवाद को लेकर चीन द्वारा धोखेबाजी से हमारे बीस सैनिकों को शहीद किया गया है।कोरोना वायरस को लेकर अपनी करतूतों पर शर्मिंदा होने या अपराधबोध से ग्रस्त होने के बजाय चीन इन दिनों जिस तरह की हरकतें कर रहा है, उसका मक्कार चेहरा एकबार फिर दुनिया के सामने है। चीन की ही करतूतों से वैश्विक महामारी कोरोना के चलते दुनिया के अनेक देशों में चीन के प्रति नफरत के भाव उबल रहे हैं। ‘एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीच्यूट’ के उपाध्यक्ष और पूर्व शीर्ष अमेरिकी राजनयिक डेनियल रसेल कह रहे हैं कि चीन ऐसे समय में अपने पड़ोसियों को उकसा रहा है और उन पर हमला कर रहा है, जब हर कोई यह अपेक्षा करता है कि चीन टकराव से बचकर अपनी अर्थव्यवस्था पर ध्यान केन्द्रित करेगा। बहरहाल, भारतीय जांबाजों की जवाबी कार्रवाई को देखते हुए चीन को समझ आ गया होगा कि भारत के साथ उलझने का अंजाम उसके लिए सुखद नहीं होगा, वह भी ऐसे समय में जब भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन के विरुद्ध माहौल बनाने में सफल हो रहा है। भारत ने चीन को अब यह स्पष्ट संदेश दे दिया है कि सीमा विवाद को सैन्य बल की ताकत पर नए सिरे से लिखने की उसकी चालबाजी कदापि स्वीकार्य नहीं होगी और भारत अब ईंट का जवाब पत्थर से देने की ताकत रखता है। फिलहाल हमारे वीर योद्धाओं का बलिदान व्यर्थ न जाए, भारत सरकार को इसके लिए पुख्ता इंतजाम करने चाहिए, साथ ही पहले से ही चरमराई चीनी अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका देकर आर्थिक दृष्टि से भी उसपर जमकर प्रहार करना चाहिए।
योगेश कुमार गोयल
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
Comentários