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क्या है असली देशभक्ति


देशभक्ति एक प्रेक्टिकल चीज है

 देशभक्ति एक गर्व करने का अहसास है। कोई भी व्यक्ति ये मानने को तैयार नहीं होगा कि वो देशभक्त नहीं है। लेकिन किसी से पूछा जाये कि देशभक्ति क्या है? तो जवाब होगा कि भारत माता की जय करना देशभक्ति है। राष्ट्रगान पर सावधान की मुद्रा में खड़े होना, राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करना और राष्ट्रीय पर्वों को बड़े धूमधाम से मनाना देशभक्ति है। किसी से पूछा जाये कि देश क्या है? तो वो राज्यों का नाम बता सकता है। प्राकृतिक इलाक़ों, नदियों, पर्वतों, सरहदों के नाम गिना सकता है। यहीं अर्थ और परिभाषाएं किताबों में हैं, मीडिया में हैं, टीवी फिल्मों में भी यहीं जानकारी दी जाती है। किसी को इससे भी ज्यादा देशभक्ति का शौक होगा तो उसकी रिंगटोन, कॉलरटोन  में देशभक्ति का तराना मिल जाएगा या उसकी व्हाट्सएप्प प्रोफ़ाइल फोटो में राष्ट्रीय ध्वज लहराता मिल जाएगा। देश का सबसे पहला और सबसे बड़ा अर्थ है देश की जनता, देश में रहने वाले लोग। और देशभक्ति का मतलब है ऐसा काम, ऐसी क्रिया जिससे देश की जनता का भला हो, और भला न हो सके तो कम से कम बुरा या नुकसान भी न हो। जैसे सैनिक चौबीस घंटे देशसेवा में जुटा रहता है वैसे ही एक आम आदमी हर समय कुछ ऐसा कर रहा होता है जिससे देश पर यानि देश की जनता पर अच्छा या बुरा प्रभाव पड़ रहा होता है। कुछ उदाहरणों से समझते हैं। किसी भी बड़े शहर के व्यस्त रोड पर चले जाइए, हर समय ट्रेफिक जाम मिलेगा। जिसकी जहाँ मर्जी, वहाँ अपनी गाड़ी, दुपहिया, कार, टेक्सी, बस खड़ी कर देगा। गलत जगह मोटरसाईकल खड़ी करके कोई सब्जी ले रहा है तो कोई कार रोक कर शॉपिंग कर रहा है। सिटी के अंदर चलने वाली बसों का भी यही हिसाब है कि जिस सवारी ने हाथ दिया, सड़क के बीचों बीच बस रोक दी गयी। एक भी आदमी ट्रेफिक नियमों का पालन करता नहीं मिलेगा। कोई मुड़ेगा तो न हाथ देगा न इंडिकेटर। इन सबके कारण बड़े बड़े शहर ट्रेफिक जाम की समस्या से जूझते हैं, एक्सिडेंट होते हैं, जान माल का नुकसान होता है और शरीर अंग-भंग होते हैं। कई ऐसे छोटे कस्बे हैं जहाँ शाम या रात होते ही लगभग पूरा कस्बा ही तार में कांटी डालकर बिजली चोरी शुरू कर देता है। कई ऐसे लोग है जो नाले के पानी से सिंचाई करके फल सब्जी उगाते हैं और दूसरों को कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी दे रहें हैं। कई ऐसे मिलावटखोर है जो खाने पीने की चीजों में मिलावट कर रहे हैं और दूसरों का स्वास्थ्य खराब कर रहें हैं। कई दुकानदार अपना सामान दुकान से बाहर सड़क पर या बरामदे में रख देते हैं और पैदल चलने वालों को आने जाने की जगह नहीं मिलती। कोई ये न सोचे कि छोटी सी बेइमानी से क्या फर्क पड़ता है। मान लो एक सड़क बनती है और भ्रष्टाचार के कारण सड़क उखड़ जाती है या उसमें गड्डे हो जाते हैं तो कई वर्षों तक वहाँ से गुजरने वालों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा और कुछ राहगीर तो ऐसे भी होगें जिनके साथ दुर्घटना घटित होगी। मान लो एक खटारा बस को फ़िटनेस सर्टिफिकेट मिल जाता है या किसी अयोग्य चालक को लाइसेंस मिल जाता है और उस बस में स्कूल के बच्चे जाएँ तो? मान लो कि आग बुझाने के सुरक्षा इंतजाम के बिना ही किसी बिल्डिंग को निर्माण अनुमति मिल जाये तो? छोटी मोटी बेईमानी से कितने लोगों की जान जोखिम में पड़ जाती है। भूमाफिया, बजरी माफिया, कालेबाजारी, रिश्वतखोर आदि सभी अपराधी तो है ही लेकिन उनकी करनी और गुनाह के कारण देश को और देश की जनता को भी नुकसान होता है और वो देशद्रोह है। लेकिन उनसे भी पूछा जाये कि क्या तुम देशद्रोही हो या देशभक्त तो वो भी सोचते होंगे कि हम तो छोटी मोटी हेराफेरी करते हैं और बाकी, हम भारत माता की जय बोलते हैं और हमें वन्दे मातरम आता है इसलिये हम पक्के देशभक्त है। यानि देश को कितना भी लूटो लेकिन कुछ ओपचारिकताओं से सब कुछ माफ हो जाता है। इन बेईमान लोगों की करनी तो कभी न कभी कानून की नजर में पकड़ी जाने की संभावना है लेकिन आम आदमी दिन भर या हर समय ऐसा कुछ करता रहता है जिससे जनता को नुकसान होता है या दुख पहुँचता है। इसको भी उदाहरणों से समझते हैं। आजादी के इतने सालों बाद भी दफ़्तरों में लालफीताशाही कम नहीं हुई। लगभग हर विभाग का ये हाल है, लोगों को अपने काम के लिए मुसद्दीलाल बनकर दफ़्तरों के कई दिनों, महीनों, वर्षों तक चक्कर काटने पड़ते हैं। बाबू या अफसर कोई न कोई कमी निकालकर, किसी न किसी कागज के नाम पर लोगों से अनावश्यक दौड़धूप करवाते हैं और वो बस इसलिये कि वो काम नहीं करना चाहते। अगर राष्ट्र का मतलब जमीन नहीं बल्कि जनता हैं तो ये लालफीताशाही, अफसरशाही एक राष्ट्रद्रोह से कम नहीं। क्या किसी ने सोचा है कि ऐसा क्यों हैं कि कुछ देश ओलंपिक खेलों में इतने पदक ले आते हैं और कुछ देश या तो खाली हाथ या फिर इक्का दुक्का से संतोष करते हैं। कारण साफ़ है, खेल अकादमियाँ अपना काम ठीक से नहीं कर रहीं। भ्रष्टाचार, लालफीताशाही, जातिवाद, आदि के कारण सही प्रतिभाओं का चयन नहीं हो रहा और न सही प्रशिक्षण। खेल अकादमियों के प्रशासकों, अधिकारियों को लगता होगा कि हम कोई राष्ट्रद्रोह कर रहें हैं? नहीं.. एक आम आदमी से लेकर साधारण कर्मचारी, रोजाना ऐसे काम करता रहता है या व्यवहार करता है जिससे देश की प्रगति में बाधा पड़ती हैं, जैसे कि अपनी नौकरी से जुड़ा  काम ठीक से न करना, अपनी जिम्मेदारी न निभाना, किसी असहाय की मदद न करना और ये सब करके भी कोई भी कर्तत्वहीनता वाली ग्लानि नही पैदा होती लेकिन किसी महापुरुष की जंयती आती है तो सोशल मीडिया पर उस महापुरुष से जुड़ा चित्र पोस्ट कर देने पर बड़ी देशभक्ति वाली भावना उमड़ती है क्योंकि फर्जी देशभक्ति की यहीं परिभाषा दिमाग में ठूस दी गयी है। कई लखपति लोग खाद्यान्न सुरक्षा योजना में अपना नाम जुड़ा लिए हैं, कई ऐसे लोग है जिनका मकान बनता है तो रोड़ी, बजरी, ईंट सड़क पर अस्त व्यस्त फैला देंगे, कई ऐसे लोग जो तय नियमों के समय के बाद भी ज़ोर ज़ोर से रात भर अपनी छत पर डीजे आदि बजाएंगे लेकिन इनमें से कोई ये नहीं सोचेगा कि मैं ऐसा कुछ कर रहा हूँ जो देशद्रोह हैं। यहाँ जन्में लोग, यहाँ पढ़े लिखे लोग, डॉक्टर, इंजीनियर पैसे कमाने विदेश जायेंगे और वहाँ भारतीय फिल्में देखकर आँसू गिरा कर कहेंगे कि देश याद आता है लेकिन यहाँ नही आयेंगे क्योंकि समस्या ये है कि देशभक्ति को एक सैद्धांतिक चीज  माना जाता है और समझा जाता है। यानि देशभक्ति व्यावहारिक चीज नहीं बस ओपचारिकता है। खूब बेईमानी करो, खूब नियम तोड़ो, मौलिक कर्तत्वों का पालन मत करो लेकिन नारे लगा दो, भाषण सुन लो, भगत सिंह के चित्र वाली टीशर्ट पहन लो, और बन गए हम देशभक्त। आज की राजनीति इस गलतफहमी की आग में घी का काम कर रही है क्योंकि जनता के दिमाग में ये और भरा जा रहा है कि नेता लोग ही देश होते हैं। जबकि देशभक्ति करने की चीज है, अपनी नौकरी या अपनी ज़िंदगी में हर पल कुछ ऐसा किया जा सकता है जो देशभक्ति को प्रतिबिंबित करता है जैसे कि कोरोना महामारी के समय में डॉक्टर, पुलिस, स्वास्थ्यकर्मियों, अध्यापकों आदि कोरोना वारियर्स ने जो कर्मठता, कर्तत्वनिष्ठा, सेवा भावना से जनता के लिए जी जान लगा दी, वो राष्ट्रभक्ति अद्वितीय है।

अवतार सिंह, जयपुर


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