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कोेरोना संकट से लाचार हुये कोटा के 20 हजार ऑटो चालक, रोजी रोटी के लाले पड़े


कोटा, 02 अगस्त । कोरोना संक्रमण का प्रकोप लंबे समय तक जारी रहने से शिक्षानगरी में जनजीवन बुरी तरह प्रभावित होने लगा है। शहर में 20 हजार ऑटोरिक्शा चालक व 8 हजार मिनीडोर व वेनचालक आर्थिक तंगी से जूझ रहे है। इनमें से कई अब फलों व सब्जी के ठेले लगाकर रोज सुबह-शाम कॉलोनियों में घूम रहे हैं।

सीएडी रोड पर ठेले में भुट्टे व नारियल बेचने वाले ऑटोचालक बाबूलाल ने बताया कि पिछले 5 माह से मैं ऑटो नहीं चला पा रहा हूं। पहले ऑटो से 12 हजार रू. महीने की कमाई थी लेकिन ऑटो बंद होने से 3 महीने का मकान किराया बकाया है। घर का राशन भी उधार ले रहेे हैं।

शहर के 20 हजार ऑटोचालकों की आपबीती सुनाते हुये उसने नम आखों से बताया कि काम छूटा तो दिहाडी काम के लिये पांच फैक्ट्रियों में कई चक्कर काटे लेकिन कोई काम नहीं मिला। अब किराये के ठेले पर भुट्टे व नारियल बेच रहा हूं। रोज 150-200 रू मिल जाते हैं। पैसे नहीं होनेे का कर्ज बढ़ता जा रहा हैं।

रोज खाली हाथ घर लौटते हैं--

तलवंडी सर्किल पर एक ऑटो में सो रहे चालक मुकेश सैनी ने बताया कि चार दिनों से रोज शाम को खाली हाथ घर लौट जाता हूं। पूरे दिन एक भी सवारी नहीं मिल रही है। पहले कोचिंग विद्यार्थियों से हमें फुर्सत नहीं मिलती थी। अब नया काम करना भी मुश्किल है। कुछ दिन ऑटोरिक्शा से आमदनी नही हुई तो इसे बेचकर गांव चला जाउंगा।

कोरोना महामारी की मार से आहत शहर के 20 हजार से अधिक ऑटोरिक्शा चालकों के साथ करीब 8 हजार मिनीडोर व वेनचालक पिछले 5 माह से खाली हाथ बैठे हैं। शिक्षानगरी में प्रतिवर्ष मार्च से जुलाई तक स्कूल, कोचिंग व अन्य शिक्षा संस्थानों में परीक्षाओं व नये सत्र की प्रवेश प्रक्रिया चलने से ऑटोचालक व मिनीडोर-वेन चालक प्रतिमाह 12 से 15 हजार रू की कमाई कर लेते थे। लेकिन इस वर्ष मार्च से कोरोना महामारी के कारण स्कूल व कोचिंग बंद हो जाने से हजारों कोचिंग विद्यार्थियों व उनके अभिभावकों की आवाजाही खत्म हो गई।

नये कोटा के मार्केट मे भी सन्नाटा पसरा हुआ है। जवाहर नगर में ऑटोचालक अब्दुल सत्तार, भंवरसिंह व किशनलाल ने बताया कि आजकल रोडवेज व प्राइवेट बसें बंद होने तथा कोटा जंक्शन व दकनिया रेलवे स्टेशन पर टेªनो की संख्या कम हो जाने से हम सारे ऑटोरिक्शा चालक निराश होकर बैठे हैं। कोरोना के भय से मार्केट में भी सवारियां नहीं मिल रही है। शहरवासी अब ऑटो की बजाय अपने वाहनों का ही उपयोग कर रहे हैं।

फल-सब्जी के ठेले व मजदूरी करने लगे--

दादाबाडी चौराहे पर ऑटोचालक नसीर अली, केशव सैनी व मोनू गुर्जर ने कहा कि रोज सुबह शाम 10 रू सवारी में मजदूरों को बिठाकर छोड रहे हैं। आजकल पेट्रोल महंगा हो जाने से खर्चा भी नहीं निकल रहा है। ऑटो बंद करना हमारी मजबूरी है। मनीष ने बताया कि कुछ ऑटोचालक फल व सब्जियों के ठेले लगा रहे हैं तो कुछ हैंगिंग ब्रिज रोड पर दिहाडी मजदूरी करने जा रहे हैं, वहां 350 रू मजदूरी मिल जाती है। शहर में सभी स्कूल व कोचिंग बंद होने से हमारे सामने अब रोजी-रोटी का संकट खडा हो गया है। कोरोना संक्रमण तेजी से फैलने और कोचिंग विद्यार्थियों के अपने घरों पर चले जाने से पूरे शहर में सन्नाटा छा रहा है।


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