कोरोना की भेंट चढ़ा आदिवासियों का कुंभ सीताबाडी मेला
- pradeep jain
- May 23, 2020
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बारां, 23 मई । बारां जिले के सहरिया आदिवासी बहुल इलाके में भरने वाला सीताबाडी मेला इस वर्ष कोरोना की भेंट चढ़ गया। हाड़ौति अंचल का यह प्रसिद्ध मेला है। हर वर्ष ज्येष्ठ माह की वटपुजनी अमावस्या से शुरू होता है और 15 दिन तक चलता है। सीताबाड़ी मेले को सहरिया आदिवासियों का कुंभ कहा जाता है। मेले में सहरिया जनजाति की सांंस्कृतिक झलक दिखती है। कोरोना संक्रमण रोकने के लिए देश में लॉकडाउन चल रहा है। ऐसे में सभी बड़े आयोजन पूरी तरह प्रतिबंधित है। लिहाजा सीताबाड़ी मेले को भी प्रशासन ने निरस्त कर दिया।
एक जनश्रुति के अनुसार वनवास के दौरान माता सीता ने यहां पर भी अपना समय बिताया था। मान्यता है कि सीता ने ही इ सक्षेत्र को हराभरा किया था। कालांतर में इस क्षेत्र का नाम माता सीता के नाम पर ही सीताबाडी हो गया। वनवास के समय सीता की प्यास बुझाने के लिए लक्ष्मण ने अपने बाण चलाकर धरती से जल प्रवाहित किया था। इसी के आधार पर यहां एक स्थान का नाम बाणगंगा और जहां सीता ने प्यास बुझाई वह लक्ष्मण कुंड भी है। यहीं पर बाल्मिकी आश्रम था, जहां सीता ने अपने बच्चो का पालन पोषण किया था। सीताबाडी के पास आज भी एक गांव है जिसका नाम खुशियारा है। कुश का जन्म इसी स्थान पर माना जाता है।
कोटा के हाडा शासक महाराव उम्मैदसिंह जी के जमाने सन 1810 से सीताबाडी मेले की विधिवत शुरूआत करवाई थी। टीका दौर के समय झाला जालिम सिंह के नेतृत्व मे शाहाबाद विजय के बाद यह क्षेत्र हाडाओं के अधिकार मे आ गया। यहां पर उन्होंने परकोटा बनवाकर कुंडों का जीर्णोद्वार करवाया। पर्यटन की दृष्टि से भी इस स्थान का विशेष महत्व है।
सीताबाडी मेले मे आदिवासी युवतियां अपना भावी जीवन साथी भी चुनती है। इसमें बडी संख्या नव युवक युवतियां जाते हैं। एक दूसरे को पंसद करते है। पंसद आ जाने पर रूमाल या कंघा एक दूसरे पर फेकते हैं। फिर जीवन साथी चुन लेते हैं। आदिवासी समुदाय अपने पारंम्परिक पोशाक में होते हैं। मेले में बडी संख्या में महिलाएं अपने शरीर के विभिन्न अंगो पर गुदना गुदवाती है यह प्रथा बहुत पहले से चली आ रही है।
अस्सी के दशक तक सीताबाडी क्षेत्र पूरी तरह से हरीतमा से आच्छादित था। सभी तरह के वृक्षों की घनी छाया से घिरा हुआ था। खास आम्र वृक्ष बहुत बड़ी संख्या में थे। कल कल बहती बाणगंगा और कूंडों में अपने आप उमंगता स्वच्छ निर्मल जल जिसको देखकर पर्यटक देखकर अभिभुत हो जाया करते थे। लेकिन नब्बे दशक में बडी संख्या में बोरवैल खुदने से भूजल का बड़ी मात्रा में दोहन हुआ और कुंडों से स्वतः बहने वाला पानी पाताल में चला गया। प्रशासन कि अनदेखी से सैंकडों बीघा मेले की जमीन अतिक्रमण की भेंट चढ गई। बड़े- बड़े वृक्ष पानी के अभाव मे दम तोड गये हरीतमा पट्टी नष्ट हो गयी।
अभी कुछ वर्षो पहले कुछ पर्यवरण प्रमियों ने बडी संख्या मे वृक्षारोपण कर सीताबाडी की हरियाली लौटने का प्रयास किया है। उनका यह प्रयास रंग लाया है। कोशिश जारी रही तो सीताबाडी अपने मूल स्वरूप में लौट सकती है। आवश्यकता है आदिवासी सहरिया जनजाति की अपनी पहचान बनाये रखने की। आदिवासी कुंभ सीताबाडी के बारे में दुनियां मे बताने की। इसके लिए प्रशासन और आमजन मानस के समन्वय और सहयोग की दरकार है।
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