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लॉकडाउन की क्रोनोलॉजी: कोरोना से निपटने के लिए अब तक क्या-क्या हुआ


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“लॉकडाउन-4, चौथे चरण का लॉकडाउन बिल्कुल नए रंग-रूप में होगा.”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई को यह बात रात आठ बजे देश के नाम अपने सम्बोधन में कही थी.

उन्होंने चौथे चरण के लॉकडाउन के बारे में विस्तार से जानकारी तो नहीं दी लेकिन इतना संकेत ज़रूर दे दिया कि इसमें पिछले तीन लॉकडाउन के मुक़ाबले ज़्यादा ढील दी जाएगी.

18 मई को लगभग दो महीने बाद भारत लॉकडाउन के चौथे चरण में पहुंच जाएगा. इस बीच देश में बहुत कुछ हुआ है.

एक नज़र तीनों चरणों के लॉकडाउन और उस दौरान हुई बड़ी घटनाओं पर:


ये जनवरी का महीना था जब कोरोना वायरस संक्रमण चीन, ब्रिटेन, इटली और जर्मनी जैसे देशों से होते हुए भारत तक पहुंच गया था.

30 जनवरी, 2020 को भारत सरकार ने देश में पहले कोविड-19 संक्रमण मामले की पुष्टि की. चीन के वुहान से केरल लौटे एक यूनिवर्सिटी छात्र कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए थे.

इस बीच ये चिंता बढ़ने लगी थी कि अगर भारत में कोरोना का कहर बरपा तो क्या यहां की स्वास्थ्य व्यवस्था इसे संभाल पाएगी? लेकिन फ़रवरी के आख़िर और मार्च की शुरुआत तक इस मसले को लेकर सरकारी स्तर पर ज़्यादा सक्रियता नज़र नहीं आई.


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जनता कर्फ़्यू: ताली और थाली

मार्च मध्य तक दुनिया भर में हालात बेहद गंभीर होने लगे और 19 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की लोगों को सम्बोधित किया. उन्होंने लोगों से 22 मार्च (रविवार) को सुबह सात से बजे रात नौ बजे तक ‘जनता कर्फ़्यू’ का पालन करने की अपील की.

प्रधानमंत्री ने स्वास्थ्यकर्मियों, पुलिस, पत्रकारों और ज़रूरी सेवाएं देने वालों के अलावा सभी से ‘जनता कर्फ़्यू’ का में शामिल होने का निवेदन किया. हालांकि ये अनिवार्य नहीं था.

इस दौरान 14 घंटे के लिए लोगों को घरों के अंदर रहने को कहा गया था. साथ ही शाम पांच बजे पांच मिनट तक अपने घरों की बाल्कनी या खिड़की से ताली या थाली बजाकर कोरोना के दौर में काम करने वालों जैसे डॉक्टरों, पुलिस और पत्रकारों का सांकेतिक शुक्रिया अदा करने को कहा गया था.

22 मार्च को बड़ी संख्या में लोगों ने जनता कर्फ़्यू का पालन किया. उसी समय से ऐसी अटकलें लगाई जाने लगीं कि देश में लॉकडाउन लगने वाला है. बाज़ारों और दुकानों में ज़्यादा भीड़ दिखने लगी थी और लोग ज़रूरी सामान इकट्ठा करने में जुट गए थे.

हालांकि तब तक सरकार ने इस बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी थी.


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लॉकडाउन-1

जनता कर्फ़्यू के दो दिनों बाद यानी 24 मार्च प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर जनता से रूबरू होने के लिए रात आठ बजे का वक़्त चुना. इस सम्बोधन में उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस संक्रमण रोकने का एकमात्र तरीका लॉकडाउन और फ़िज़िकल डिस्टेसिंग है. उन्होंने लोगों से अगले 21 दिनों तक घरों में रहने की अपील की.

प्रधानमंत्री ने कहा, “आप अभी जहां हैं, 21 दिनों तक वहीं रहिए.”

उन्होंने लोगों से ‘पैनिक बाइंग’ न करने की अपील की और कहा कि खाने-पीने की ज़रूरी चीज़ों की आपूर्ति में कोई कमी नहीं होने दी जाएगी. लेकिन लोग काफ़ी घबराए हुए थे और उन पर इस अपील का बहुत ज़्यादा असर नहीं हुआ. आधी रात में खरीदारी करती हुई भीड़ की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं.

इसी के साथ उन्होंने 25 मार्च से 14 अप्रैल तक के लिए देशव्यापी लॉकडाउन का ऐलान कर दिया. लॉकडाउन के दौरान हर तरह की यातायात सुविधाएं जैसे बस, ट्रेन, ऑटो और कैब प्रतिबन्धित कर दी गईं. हवाई सेवाओं पर पहले ही रोक लग चुकी थी.

हर तरह के निर्माण कार्य और कारोबार बंद कर दिए गए. संस्थानों को निर्देश दिया गया कि वो अपने स्टाफ़ को घर से काम करने के लिए कहें. सभी रेस्तरां और दुकानें बंद कर दी गईं. हालांकि स्विगी और ज़ोमैट जैसे फ़ूड डिलिवरी सेवाओं को जारी रखा गया.

स्वास्थ्यकर्मी, पुलिस, पत्रकारों और ज़रूरी सुविधाएं देने वालों के अलावा बाकी सबका काम पर जाना रोक दिया गया. सभी धार्मिक स्थल और दफ़्तर भी बंद कर दिए गए.

हालांकि किराने की दुकानों, फल-सब्ज़ियों और दवा की दुकानों, पेट्रोल पंप और एटीएम मशीनों को चालू रखने के निर्देश दिए गए. इस बीच लॉकडाउन नियमों का उल्लंघन करने वाले लोगों को हिरासत में लिया गया और उन पर ज़ुर्माना भी लगाया गया.


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तब्लीग़ी जमात और नौ बजकर नौ मिनट

26 मार्च को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने लॉकडाउन से प्रभावित लोगों के लिए 17 हज़ार करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की. इस बीच लॉकडाउन का अचानक ऐलान करने के लिए और लोगों को तैयारी का पर्याप्त समय न देने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना भी होती रही.

अप्रैल की शुरुआत में दिल्ली के निज़ामुद्दीन में तब्लीग़ी जमात के एक धार्मिक कार्यक्रम में जुटे लोगों को लेकर भी ख़ूब विवाद हुआ. तब्लीग़ी जमात के कई सदस्य और मरकज़ में शामिल हुए कई लोग देश के अलग-अलग हिस्सों में कोरोना वायरस पॉज़िटिव पाए गए थे.

लॉकडाउन के पहले चरण में पांच अप्रैल को लोगों ने प्रधानमंत्री की अपील पर रात नौ बजे नौ मिनट तक अपने घरों की बत्तियां बुझाकर दीये, मोमबत्ती, टॉर्च और मोबाइल की फ़्लैशलाइट जलाकर कोरोना से संघर्ष करने वालों के साथ एकजुटता दिखाई.

पहले लॉकडाउन की समाप्ति से पहले पंजाब, दिल्ली, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों ने इसे बढ़ाए जाने की इच्छा ज़ाहिर की.

केंद्र सरकार ने भी राज्यों से सहमति जताई और कहा कि लॉकडाउन की वजह से संक्रमण की डबलिंग रेट में कमी दर्ज की गई है इसलिए इसे बढ़ाया जाना चाहिए.


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लॉकडाउन-2

14 अप्रैल को प्रधानमंत्री मोदी ने लॉकडाउन के दूसरे चरण की घोषणा की. उन्होंने कहा कि जिन क्षेत्रों में संक्रमण के मामलों में कमी आई है, वहां पाबंदियों में कुछ ढील दी जाएगी. इसी के साथ 15 अप्रैल से तीन मई तक के लिए दूसरे चरण का लॉकडाउन लागू कर दिया गया.

16 अप्रैल को संक्रमण की गंभीरता को देखते हुए अलग-अलग इलाकों को रेड ज़ोन, ग्रीन ज़ोन, ऑरेंज ज़ोन और हॉटस्पॉट की श्रेणी में बांटा गया. ग्रीन ज़ोन में रहने वालों को पाबंदियों में सबसे ज़्यादा छूट मिली.

प्रवासी मज़दूरों का पलायन

इस दौरान प्रवासी मज़दूरों, बेघर और ग़रीब लोगों के लिए रोजी-रोटी की समस्या विकट रूप लेने लगी. हज़ारों मज़दूरों को दिल्ली, मुंबई और अहमदाबाद जैसे शहरों की सड़कों पर देखा गया.

काम छिनने के बाद सैकड़ों-हज़ारों के समूह में ये मज़दूर पैदल ही अपने छोटे बच्चों के साथ अपने गांव जाने को मजबूर हो गए. पैदल चलने वालों में गर्भवती महिलाएं, बुजुर्ग, विकलांग और बच्चे थे.

कुछ मज़दूर पैदल चलते-चलते ही चल बसे और कुछ सड़क हादसों की चपेट में आ गए. कुछ गर्भवती महिलाओं ने सड़क पर ही बच्चों को जन्म दिया. कुछ मज़दूर घर पहुंचने के करीब ही थे कि उनकी मौत हो गई.

प्रवासी मज़दूरों के इस पलायन को देखते हुए केंद्र सरकार और उसकी लॉकडाउन पर कई सवाल खड़े किए गए. राज्य सरकारों की भी लगातार आलोचना हुई. वहीं, सरकारें अपना बचाव करने में लगी रहीं.

कुछ सरकारों ने मज़दूरों के लिए आश्रय गृह, क्वारंटीन सेंटर और खाने-पीने की चीज़ों का इंतज़ाम भी किया लेकिन ये अप्रभावी और नाकाफ़ी साबित हुआ.


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डॉक्टरों पर हमले और नया क़ानून

बेरोज़गारी, चरमराती अर्थव्यवस्था और बुनियादी सुविधाओं का संकट सामने आने के बाद केंद्र सरकार ने 20 अप्रैल से पाबंदियों में कुछ ढील दी. खेती, मनरेगा, निर्माण कार्य, दूध के कारोबार और कुछ दुकानों को खोले जाने का ऐलान किया गया.

इस दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों से डॉक्टरों और स्वास्थकर्मियों पर लगातार हमले की ख़बरें भी आईं. नतीजन मद्देनज़र केंद्र सरकार को संक्रामक बीमारी क़ानून, 1987 में संशोधन करके एक अध्यादेश लाना पड़ा.

स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला करने या उनकी संपत्ति को नुक़सान पहुंचाने पर जेल की सज़ा और भारी ज़ुर्माने का प्रावधान किया गया.

29 अप्रैल को दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी मज़दूरों और अन्य लोगों को आने-जाने के लिए कुछ बस सेवाएं शुरू की गईं.

लॉकडाउन-3

तीसरे चरण का लॉकडाउन चार मई से 17 मई तक के लिए लागू किया गया. इस दौरान पाबंदियों में कई तरह की ढील दी गई लेकिन सबसे ज़्यादा जिस ढील की चर्चा रही वो थी: शराब की बिक्री.

लगातार सुस्त हो रही अर्थव्यवस्था और गिरते राजस्व के मद्देनज़र सरकार ने शराब की दुकानें खोलने को मंज़ूरी दे दी. छूट मिलते ही शराब के दुकानों पर भारी भीड़ और लंबी लाइनें देखी गईं.


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फ़िज़िकल डिस्टेंसिंग के नियम भी ताक पर रख दिए गए. कुछ जगहों पर भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा और कुछ जगहों पर दुकानें बंद तक करनी पड़ीं.

इसके बाद कुछ राज्य सरकारों ने शराब के दाम कई गुना बढ़ा दिए तो कई राज्यों में होम डिलिवरी की सुविधा उपलब्ध कराई गई. शराब की बिक्री में छूट के कदम की भी विशेषज्ञों ने कड़ी आलोचना की.

इस बीच सरकार ने विदेशों में फंसे भारतीयों को लाने के लिए एयर इंडिया और भारतीय सेना के साथ मिलकर ‘वंदे भारत मिशन’ शुरू किया है.

12 मई को प्रधानमंत्री मोदी ने ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के तहत 20 हज़ार करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान किया. वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण इन दिनों रोज़ प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर अलग-अलग सेक्टरों के बीच इस पैकेज की किस्तों का ऐलान कर रही हैं.

लेकिन लॉकडाउन के दौरान सरकारें जिस मोर्चे पर सबसे ज़्यादा विफल दिखीं वो है: प्रवासी मज़दूरों की समस्या का समाधान करने में. अब भी हज़ारों मज़दूर और कामगर सड़कों पर पदैल चलने को मजबूर हैं.


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