ग्रामीण टोटके दे रहे अच्छे मानसून का संकेत, दो आश्विन से भी आस
- anwar hassan

- May 16, 2020
- 2 min read

उदयपुर, 16 मई (हि.स.)। भारतीय ग्रामीण परिवेश में कई परम्पराएं या स्थानीय प्रक्रियाएं ऐसी हैं जिनका वैज्ञानिक तौर पर भले ही महत्व न माना जाए लेकिन स्थानीय स्तर पर उनकी मान्यता अटूट है। खासतौर से भारत में बारिश को लेकर कई कयास लगाए जाते हैं। इनमें टिटहरी के अंडे वाला कयास, बारिश न होने पर मटकियां फोडऩे वाला टोटका आदि तो समाचार पत्रों का हिस्सा बनता ही रहा है। कारण यह है कि भारत में आज भी सबकुछ चौमासे पर निर्भर है। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था बारिश के इन चार महीनों पर ही निर्भर होती है। बारिश पर्याप्त नहीं हो तो दिक्कत और बारिश ज्यादा हो जाए तो भी दिक्कत, लेकिन बारिश तो चाहिए ही। ऐसे में गांवों में आज भी चौमासे की स्थिति को लेकर कई टोटके व्याप्त हैं। इन दिनों एक ऐसा ही टोटका सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इसमें कुम्हार ताजा-ताजा चार गेली (छोटी मटकियां) बनाता है और बीच में गोबर के छाणे (कंडे) की धूणी लगाकर उसके चारों ओर ये गेलियां रखी जाती हैं। फिर उन्हें पानी से भर दिया जाता है। इन्हें चौमासे के चारों महीनों के नाम रखा जाता है, ये महीने आषाढ़, सावन, भाद्रपद और आश्विन (स्थानीय भाषा में आसोज) हैं। इस टोटके में नजर आ रहा है कि आषाढ़ और आसोज वाली गेलियां पहले फूट जाती हैं और सावन-भाद्रपद के नाम की गेलियां थोड़ी देर से फूटती हैं। लेकिन, चारों के फूट जाने से यह अंदाजा लगाया जाता है कि चारों में महीनों में ठीक-ठाक बारिश होगी। यह टोटके कई बार सही साबित होते हैं तो कई बार नहीं भी, लेकिन ग्रामीण भारत इन टोटकों में श्रद्धा रखता है और इसी आधार पर किसान, कुम्हार, दिहाड़ी, सिजारी आदि ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़े लोग अपनी-अपनी अगली तैयारी में जुटते हैं। जो भी हो, वैसे भी इस बार आश्विन मास दो है, यानि एक अधिक मास है जो भारतीय चंद्रगति आधारित हिन्दी महीनों के साल में हर तीन साल में एक बार आता है। ऐसे में चौमासा पांच महीने का है। ऐसे में बारिश के पर्याप्त होने की उम्मीद की जा सकती है।























































































Comments