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खूबसूरत दिखने वाला बाघ संकट में !


खतरनाक,खूंखार परंतु खूबसूरत जंगल का राजा कहा जाने वाले बाघ देखने के लिए बच्चे चिड़ियाघर चलने की जिद्द करते हैं। बड़े होने पर नजदीक के वन्य जीव अभ्यारण्य में खुले वातावरण में देखने जाते हैं। भारत सहित कई देशों में बनाये गए राष्ट्रीय पार्को में देखने के लिए बड़ी संख्या में सैलानी और वन्यजीव प्रेमी पहुँचते हैं। राष्ट्रीय पार्क में घूमते समय बाघ बैठे, चलते,बच्चों के साथ, समूह में, जल में तैरते, क्रीड़ा करते कैसे भी दिखाई दे जाए तो प्रसन्ता का ठिकाना नहीं रहता और कैमरे व मोबाइल से चित्र उतारने के लिए मन मचल उठता है। बाघ को उन्मुक्त वातावरण में विचरण करते और बाघ क्रीड़ाओं को देखने का स्वपन संजोय लाखों विदेशी सैलानी भारत आते हैं और विशेषकर बाघ संरक्षित राष्ट्रीय उद्यानों का रुख करते हैं। बाघ दिखाई देने की अपार खुशी चेहरे पर नाचती देखी जा सकती है। बाघ देश की शक्ति, शान, सतर्कता, बुद्धि तथा धीरज का प्रतीक होने के साथ-साथ पर्यावरणीय महत्व के लिए महत्वपूर्ण है।           राष्ट्रीय पशु बाघ का कुनबा बढ़ाने के वैश्विक प्रयास ना काफी दिखाई दे रहे हैं। वर्ष 2010 में वैश्विक स्तर पर बाघों को 2022 तक दुगुना करने  का विचार-लक्ष्य दूर की कौड़ी नज़र आता है। तेजी से घटती बाघों की संख्या चिंता का विषय है। बाघ की प्रजाति लुप्त न हो जाये इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए बाघों के संरक्षण के प्रति जन जागृति के लिए 29 जुलाई 2010 को सेंट पीटर्सबर्ग समिट में हर वर्ष विश्व बाघ दिवस मनाने का निर्णय किया गया। समिट में 13 देशों ने भरोसा जताया कि वे 2022 तक बाघों की संख्या दुगनी कर देंगे।            लुप्त होती बाघों की खतरनाक स्थिति का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि विगत 100 वर्षों में बाघों की संख्या में 97 फीसदी की कमी दर्ज की गई हैं। वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फण्ड एवं ग्लोबल टाइगर फोरम की वर्ष 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2015 तक विश्व में बाघों की संख्या एक लाख थी जो इतनी तेजी से कम हुई कि 2016 में केवल 6 हज़ार तक सिमट कर रह गई। इनमें से 3891 भारत में पाये गए।              राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के मुताबिक बाघों की आखिरी जनगणना 2014 के अनुसार देश में 2226 बाघ थे जो 2010 कि जनगणना में पाये गए 1706 बाघों से काफी अधिक थे। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा वर्ष 2019 के अन्तर्राष्ट्रीय बाघ दिवस पर इंडिया टाइगर एस्टिमेशन-2018 जारी कर बताया कि देश में बाघों की संख्या 2967 तक पहुँच गई हैं। वर्ष 2014 के मुकाबले बाघों की संख्या में 714 की वृद्धि हई। बाघों में बढ़ोतरी होने पर भी ग्लोबल टाइगर फोरम की रिपोर्ट की तुलना में भारत मे 3891 की तुलना में  914 की कमी हुई है।             भारतीय उप महाद्वीप के प्रतीक बाघ उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र को छोड़ कर पूरे देश में देखा जाता हैं। विश्व में बाघों की मिलने वाली प्रजातियों में बंगाल बाघ, साइबेरियन बाघ, इंडोचाईनीज बाघ, मलायन बाघ, सुमात्रा बाघ और साउथ चाइना बाघ शामिल हैं। बाघों की कुछ प्रजातियां बाली टाइगर,कैस्पियन टाइगर, जावन टाइगर विलुप्त हो चुकी हैं। भारत ऐसे देशों में शामिल हैं जहां कुछ समय से बाघों की संख्या मर बढ़ोतरी देखी गई हैं। उत्तराखंड में 1995 से 2019 तक किये गए विभिन्न शोध एवं अध्ययनों के आधार पर कहा जा रहा है कि उत्तराखंड भारत में बाघों की राजधानी के रूप में उभर रहा है। इस राज्य के हर जिले में बाघ मौजूद हैं।             भारत में बाघ संरक्षण के प्रयास 1973-74 में प्रारम्भ हुए जब प्रथम बार बाघ संरक्षण परियोजना प्रारम्भ की गई। तब से लेकर अब तक देश में लगभग 55 संरक्षण परियोजनाएं घोषित की जा चुकी हैं। देश में नागार्जुन श्रीशैलम अभ्यारण्य सबसे बड़ा बाघ संरक्षित क्षेत्र है। यह पांच जिलों नागालैंड,महबूबनगर,कुरनूल,प्रकाशम एवं गुंटूर जिलों तक फैला हुआ है। प्रमुख अभयारण्य राजस्थान का रणथम्भौर एवं सरिस्का, उत्तराखंड का जिम कॉर्बेट,मध्य प्रदेश जा कान्हा ,कर्नाटक के बांदीपुर एवं महाराष्ट्र का मेल घाट आदि हैं।               शहरों और कृषि के विस्तार से बाघों का 93 प्रतिशत प्राकृतिक आवास खत्म होना, बाघों के चमड़े, हड्डियों एवं शरीर के अन्य भागों के लिए अवैध शिकार किया जाना एवं जलवायु परिवर्तन से समुद्र का जल स्तर बढ़ना और जंगलों के खत्म होना, वन क्षेत्रों में निरन्तर कमी आना ऐसे प्रमुख कारण हैं जो बाघों के संरक्षण एवं विकास में बड़े बाधक एवं अवरोध का कारण बनते हैं। बाघ के कुनबे को बढ़ाने एवं संरक्षित करने के लिए आवश्यकता है कि वनों की अवैध कटाई एवं बाघ के शिकार सम्बन्धी कानूनी प्रावधानों को पूरी निष्ठा और गम्भीरता से लागू किया जाये।चलाई जा रही बाघ संरक्षण परियोजनाओं के लिए पर्याप्त धनराशि का प्रावधान कर उनकी धीमी गति को तेज किया जाये। बाघ संरक्षित क्षेत्रों की निगरानी एवं सुरक्षा व्यवस्था को प्रभावी बनाया जाये। वनों के विकास के लिए सघन वृक्षारोपण के साथ-साथ विशेष अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन योजनाएं बनाई जाएं।

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल लेखक एवं अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार 


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