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क्यों नही भीलवाड़ा मॉडल को अपना रहे हम लोग ?


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कोटा शहर लगातार कोविड-19 का हॉटस्पॉट बना हुआ है।दिन प्रतिदिन नए-नए पॉजिटिव केस आ रहे है। शहर के मकबरा, कैथूनीपोल,रामपुरा, गुम्मानपुरा, बोरखेड़ा,नयापुरा,अनंतपुरा, दादाबाड़ी और भीमगंजमंडी थाना क्षेत्रो में 8 मई तक के लिए कर्फ्यू लगा हुआ है। जिले का चिकित्सा विभाग प्रतिदिन एक से डेढ़ लाख लोगों की स्क्रीनिग करने का दावा कर रहा है। विभाग की 700 टीमें दिन रात जुटी है। फिर भी परिणाम ढाक के तीन पात क्यों ? आखिर कमी कहाँ है ?

ये सवाल इस लिए की राजस्थान का भीलवाड़ा जिला कोविड-19 से जीतने में विश्व कीर्तिमान बना चुका है। खुद प्रदेश की सरकार और आदरणीय मुख्यमंत्री इस उपलब्धि के लिए अपनी पीठ थप थपा चुके है। देश के अन्य प्रदेशों को कोरोना वायरस से निपटने के लिए भीलवाड़ा मॉडल अपनाने की नसीहत दी जा चुकी है। फिर कोटा में इस मॉडल को अपनाने से परहेज क्यों ?

कोटा में पहला पॉजिटिव केस 6 अप्रैल को उस समय आया था। जब स्टेशन क्षेत्र के तेलघर निवासी एक वृद्ध की अस्पताल में मौत के बाद जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आयी थी। तब से अब तक पूरा एक महीना होने को आया,परंतु पॉजिटिव केस कम होने के बजाय बढ़ते ही जा रहे है। ऐसा एक भी दिन नही निकला जब एक भी पॉजिटिव नही मिला हो। आज 2 मई तक ये संख्या कुल 205 के आंकड़े पर पहुच चुकी है। लेकिन बावजूद इसके प्रशासन के पास अब भी कोविड - 19 को काबू करने की कोई ठोस रणनीति नज़र नही आती। एल एन सोनी की सेवानिवृति के बाद नए आये कैलाश चंद मीना ने संभागीय आयुक्त का पदभार संभाल लिया है। पर कोरोना वायरस पर कितना काबू कर पाएंगे ये भविष्य के गर्भ में है।

जिला कलेक्टर कोटा कोचिंग के बच्चो को सफलतापूर्वक अपने ग्रह क्षेत्रो को भेजने के बाद अब प्रवासी श्रमिको को वापस लौटने की व्यवस्था में जुटे है। श्रमिक भी सुरक्षित अपने - अपने घरो को पहुच जाएंगे। परंतु गम्भीर सवाल ये है कि रेड जोन में रह रहे कोटावासी कहाँ जाएंगे ? लॉक डाउन को 40 दिन हो गए। लोग प्रशासन के भरोसे 40 दिन से सब कुछ छोड़ कर अपने घरों में बैठे है। लेकिन कब तक ?


प्रताप सिंह तोमर

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